भील (निषाद) भारत की एक प्रमुख निषादवंशीय जनजाति हैं

अलीगढ़, एकलव्य मानव सन्देश के लिये राहुल कुमार कश्यप के द्वारा संग्रहित लेख, 3 अगस्त 2017।
"भील(निषाद) भारत की एक प्रमुख निषादवंशीय जनजाति हैं। जनसंख्या की दृस्टि से भील मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है"l

मध्य प्रदेश के भील ‘जरायम पेशा’घुमक्कड़ हैं  यह जाति राजस्थान राज्य की मुख्य जातियों में से एक है। इस जाति के लगभग 39 प्रतिशत लोग, जो राजस्थान में बनस्वारा गाँव में बसते हैं, वे सभी भील जाति के हैं। यह भारत की तीसरी बड़ी आदिवासी जाति है। आर्थिक रूप से इस जाति के लोग स्थायी रूप से कृषक, सामाजिक दृष्टि से पितृ-सत्तात्मक जनजाति एवं परम्परागत रूप से एक अच्छे तीरंदाज होते हैं। वर्तमान समय में यह जनजाति विकास के विभन्न चरणों में मानी जाती है। मध्य प्रदेश के भील ‘जरायम पेशा’घुमक्कड़ हैं, ख़ानदेश के कृषक, गुजरात के आखेटक और कृषक तथा राजस्थान और महाराष्ट्र में ये भ्रमणकारी आखेटक, स्थायी कृषक अथवा मज़दूरी में लगे हुए हैं।

भीलो की प्रमुख उपजातियाँ:-

भिलाला रथियास बरेला बैगास पटलिया

निवास क्षेत्र:-

भील शब्द की उत्पत्ति “बिल” से हुई है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं “धनुष”। भील जाति दो प्रकार से विभाजित है- 1.उजलिया/क्षत्रिय भील- उजलिया भील मूल रूप से वे क्षत्रिय है जो सामाजिक/मुगल आक्रमण के समय जंगलो में चले गए एवं मूल भीलों से वैवाहिक संबंध स्थापित कर लेने से स्वयं को उजलिया भील कहने लगे मालवा में रहने वाले भील वही है। इनके रिति रिवाज राजपूतों की तरह ही है। इनमें वधूमूल्य नहीं पाया जाता और ना ही ये भीली भाषा बोलते है। इनके चेहरे और शरीर की बनाबट, कद काठी प्राचीन राजपूतों से मिलती है। 2.लंगोट भील-ये वनों में रहने वाले मूल भील है इनके रीति रिवाज आज भी पुराने है। इनमें वधूमूल्य का प्रचलन पाया जाता है। म.प्र. के निमाड में रहने

स्त्रियाँ:-

भील जाति की स्त्रियाँ बहुत ही संकीर्ण विचारों की होती हैं, परन्तु उन को हाथी दाँत, लाख, चाँदी और काँसे के गहने पहनने का बहुत शौक़ होता है। किसी भी भील औरत को ज़रूरी गहनों के बिना कभी नहीं देखा जा सकता। वह सदैव ही कुछ न कुछ गहने के रूप में अवश्य पहने रहती हैं। ‘बोरला’, जिसे वे माथे पर पहनती हैं; ‘झीला’, जो सिर के सिरे से कानों पर लटकते हैं। फिर ‘पंडे’, जो कान के बाहरी उपरी हिस्से में तीन की संख्या में पहने जाते हैं; फिर ‘कर्णफूल’ जो कानों में छेद कराकर पहने जाते हैं; फिर ‘तुस्सा’ या ‘बज़ार बट्टी’ अर्थात चूड़ियाँ भी होती हैं। इस जाति के लोगों में चाहे लड़की हो या लड़का पढ़ाने के लिए किसी को भी उत्साहित नहीं किया जाता है। इसलिए उनके शिक्षित होने की संख्या बहुत ही कम पाई जाती है। इसी कारण लोग उनका फ़ायदा उठाते हैं और वे एक प्रकार के बन्धुवा मज़दूरों के समान काम करते हैं।

भील जनजाति के लोग:-

भील सामान्यत: छोटे क़द के होते हैं, औसत मध्यम क़द 163 सेमी. का, सिर की लम्बाई 181.1 सेमी. तथा चौड़ाई 137.4 सेमी. होती है। कपाल निर्देशांक मध्यम, नाक मध्यम रूप से चौडी होती है। चेहरा गोलाई लिए चौड़ा और शरीर पूर्णत: विकिसित होता है। इनका रंग हल्के भूरे से गहरा काला, बाल चिकने तथा काले, किंतु घुंघराले नहीं होते। आँख का रंग कत्थई से गहरा भूरा होता है। आँख की पुतली बड़ी, सिर सीधा और चौड़ा, होंठ पतले से मोटे, ठुड्डी गोल से अण्डाकार तक, दाढ़ी-मूँछ कम, शरीर पर बाल कम, भौंहों के ऊपर की हड्डियाँ, पूर्णत: विकसित और शरीर सुगठित होता है। भील स्त्रियों का रंग सुन्दर, हल्का गेहूँआ, सुगठित शरीर, गोल चेहरा, पतले होंठ, सामान्यत: छरहरा-भरा बदन होता है। ये हंसमुख, मृदुभाषी और चलते समय बड़ी आकर्षक लगती हैं।

भोजन:-

इस जाति के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ, चावल, मक्का, कोदों, दाल तथा सब्ज़ियाँ आदि होती हैं। उत्सव के अवसर पर अथवा शिकार करने पर बकरे या भैंसे का मांस, मुर्गी के अण्डे, मछलियाँ भी खायी जाती हैं। यदा-कदा दूध अथवा छाछ का भी प्रयोग किया जाता है। ये दो बार भोजन करते हैं। प्रात:काल के भोजन में चावल, कोदों तथा सब्जी या दाल खाते हैं और शाम को मक्का की रोटी तथा प्याज या कोई सब्जी। महुआ की बनी शराब तथा ताड़ का रस खूब पिया जाता है। तम्बाकू और गाँजे का भी सेवन किया जाता है। महुआ के फल, सीताफल, आम, बेर आदि का उपयोग भी किया जाता है।

शिक्षा की स्थिति:-

भील लोग स्वभाव से निडर, ईमानदारी, अतिथि सत्कार करने वाले, अपने वचन के पक्के और सीधे-सादे होते है, किंतु वर्तमान में उनका सम्पर्क नगरीय क्षेत्रों से होने के कारण अब वे भी बहुत चतुर, चालाक बन गए हैं। इनमें शिक्षा का प्रचार भी हो गया है। आधुनिक वेश-भूषा भी ये लोग पहनने लगे हैं तथा अधिक सभ्य होते जा रहे हैं। हालाँकि वे पिछड़ी हुई जाति के हैं और बहुत ही निर्धन होते हैं, तौ भी अपनी आँखों की चमक से हमेशा ये हँसमुख और खुशहाल प्रतीत होते हैं।

वाले अधिकांश जनजाति यही है।

धार्मिक जीवन:-

भीलो का धर्म आत्मा वादी हे इनके प्रमुख देवता राजपंथा है जानवरों में ये लोग घोड़े और  सर्प की पूजा करते हैं हिन्दू धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप भील  लोग शिव काली हनुमान आदि देवताओं की भी पूजा करते है। इनमे पहाड़ ,वन ,पानी, और फसलों ,के भी अलग अलग देवता होते हैं इनके द्वारा की गयी कृषि को चिमiता कहते हैं।

भीलो में प्रचलित विवाह भीलो में प्रचलित नृत्य:- 

भीलो में प्रचलित पर्व 

भगोरिया:-भगोरिया

डोहा:-गल

बड़वा:- चलवणी

घूमर:- जातरा

गोरी:- गोल घेघढ़ा।